Saturday 29 July 2023

ये बनावटी मुस्कान...!

चेहरे पर ये जो,

बनावटी मुस्कान ला रहे हो।

मेरे दर्द पर मुस्कराने का,

हुनर अभी जिंदा है या,

अपना कोई दर्द छिपा रहे हो।।


बिखरा तो मैं भी था,

मगर फिर से जुड़ गया।

आज़ाद पंछी था,

फुर्र से उड़ गया।।


ये ऊंची ईमारतें, महंगी गाड़ियां,

माफ़ करना, मेरे बस की नहीं थी।

उस बड़ी सी कोठी में रहकर,

आज भी तन्हा है जो,

शायद तुम तो वही थी।


उन रिश्तों की कीमत लगाई तुमने

जो सामने थे तुम्हारे मुफ्त में।

मगर तुम्हारी गलती भी क्या थी,

तुम तो कैद थी,

दिखावटी ज़माने की गिरफ्त में।।


शौहरत और रुतबे का,

नशा तुम पर,

कुछ ऐसा चढ़ा था।

देख नहीं पाए तुम शायद मुझे,

मैं वहीं भीड़ में खड़ा था।


आज भी इस दिखावे से

शायद निकल नहीं पा रहे हो,

शायद इसीलिए चेहरे पर ये,

बनावटी मुस्कान ला रहे हो।। 

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चेहरे पर ये जो, बनावटी मुस्कान ला रहे हो। मेरे दर्द पर मुस्कराने का, हुनर अभी जिंदा है या, अपना कोई दर्द छिपा रहे हो।। बिखरा तो मैं भी था, म...