Tuesday 27 June 2023

मेरा गांव

हां

मैं एक गांव से आता हूं।


वहां आज भी,

पिता के नाम से जाना जाता हूं।

और यहां शहर में,

फ्लैट नंबर से ही पहचाना जाता हूं।

 

कुएं पर नहाने से शावर में नहाने तक का सफर,

कब तय हुआ, पता नहीं चला।

मगर कामयाबी की इस दौड़ में,

गांव कब पीछे छूट गया, पता नहीं चला।

 

वहां मिट्टी के कच्चे घरों में भी,

पक्के रिश्ते मिल जाते हैं।

और यहां ऊंची इमारतों में भी,

खोखले जमीर पाए जाते हैं।

 

पर सुकून ये है कि,

आज भी परिवार साथ है।

मेरे सर पर,

माता पिता, बुजुर्गों का हाथ है।

 

अब गांव साल में,

कभी कभी ही जा पाता हूं।

अपने गांव को देखकर,

आज भी बच्चा हो जाता हूं।

हां

मैं एक गांव से आता हूं।

Wednesday 14 June 2023

असफलता - एक और अवसर

जीतने की दौड़ में,

मुमकिन है कभी हार भी जाओ,

चढ़ते चढ़ते सीढियां,

हो सकता है कभी गिर भी जाओ।


असफलता जो मिले तुम्हें,

समझो एक पड़ाव है, ठहराव नहीं,

कामयाबी तक जाता है जो रास्ता,

शुरुआत है उसकी, मुकाम नहीं।


ना कभी उदास होना,

ना कभी घबराना,

परीक्षा की इस घड़ी में,

अपने कदम पीछे ना हटाना।


असफलता इक अवसर है,

पहचानो इसे और आगे बढ़ो,

जो लिख ना पाए इस बार,

वो नई इबारतें गढ़ो।


अपने कर्तव्य पथ पर,

उस चिड़िया से सीखो अडिगता से बढ़ना,

हजार बार टूटने पर भी घोंसला,

ना छोड़ा जिसने लड़ना।


हौसले मजबूत हो तुम्हारे,

तो कोई लक्ष्य बड़ा नहीं,

क्यूंकि जीवन के इस महासमर में,

हारा वहीं जो लड़ा नहीं।

Thursday 1 June 2023

इक अनकही कहानी

यूं तो बात कुछ पुरानी है,

इक अनकही सी कहानी है।

जो लिखने का आज खयाल आया,

शायद दिल को कुछ बात बतानी है।


काश, उनसे नज़रें ना मिली होती,

दिल की बातें आंखों से ना हुई होती।

काश ना गुजरे होते उन गलियों से,

ना मर्ज होता, ना मर्ज की दवा होती।


कसूर सारा उन निगाहों का था,

देखा जिन्हें, और फना हो गए।

राहें चली थी जिन्हें थामे,

जाने वो हाथ कहां खो गए।


शब के अंधेरों में जिसकी यादें थी,

दिन के उजालों में उसी की बातें थी।

दिल में मकां बना लिया था

ना भूलने वाली वो मुलाकातें थी।


जिस साथ के साथ हालात बदलने चले थे,

हालात कुछ ऐसे हुए कि वो साथ छूट गया।

देखा था जो ख्वाब हमनें,

शीशे सा निकला, छन से टूट गया।


कसमें साथ रहने की जिसके साथ खाई थी,

जिस चेहरे के पीछे हमने दुनिया भुलाई थी।

दूर होने का जिससे खयाल भी ना था कभी,

उसी का दिल तोड़ने की नौबत भी आई थी।


सोचा लिया था उन्हें भूल जायेंगे,

ना याद करेंगे, ना याद आएंगे।

पता था, इस दोराहे से जो अलग हुए रास्ते,

लौटकर कभी वापिस मिल ना पाएंगे।


आसां तो नहीं था सब कुछ मेरे लिए भी,

मगर हालात ऐसे थे कि उनसे दूर हुए।

मेरी बेबसी का आलम तो देखिए,

कत्ल भी हमारा हुआ और गुनहगार भी हम हुए।


खैर, बातें ये, महज़ यादें हैं जिन्हें भुला ना सके,

जिंदगी के उस मोड़ से मुड़कर आ ना सके।

वो खता करके भी खफ़ा हो गए,

और हम अपनी बेबसी भी बता ना सके।


आरज़ू थी कभी हमारी भी, ख्वाबों को पूरा करने की,

क्या पता था, ख्वाब देखना ही एक आरज़ू बन जायेगी।

छोड़ आए थे जिनको सफर में पीछे,

पता नहीं था वो यादें इतनी खास बन जाएंगी।

ये बनावटी मुस्कान...!

चेहरे पर ये जो, बनावटी मुस्कान ला रहे हो। मेरे दर्द पर मुस्कराने का, हुनर अभी जिंदा है या, अपना कोई दर्द छिपा रहे हो।। बिखरा तो मैं भी था, म...