हां...ये भी अच्छा होता है।
बचपन गुजर जाने के बाद भी,
मन के अंदर इक कोने में,
उस बचपन को जिंदा रखना अच्छा होता है।
अपनी गलती न होने पर भी,
कभी कभी अपनों के लिए,
चुप रह जाना भी अच्छा होता है।
व्हाट्सएप या फेसबुक पर पोस्ट किए बिना,
कभी किसी की मदद करना,
किसी को सहारा देना भी अच्छा होता है।
कभी कभी यूं ही बिना किसी वजह के,
अपने किसी पुराने दोस्त से,
बात कर लेना अच्छा होता है।
चंद लम्हों के लिए,
अपना स्टैंडर्ड, रुतबा भूलकर,
वो पुरानी जिंदगी जी लेना भी अच्छा होता है।
गर फुरसत मिल जाए,
जो बाहर की दुनिया से,
तो कभी अपने घर में,
अपनों के साथ बैठकर भी,
थोड़ी गुफ्तगू कर लेना अच्छा होता है।
हां...जिंदा रहते हुए ही,
जिंदगी को जी लेना अच्छा होता है।