Thursday 1 June 2023

इक अनकही कहानी

यूं तो बात कुछ पुरानी है,

इक अनकही सी कहानी है।

जो लिखने का आज खयाल आया,

शायद दिल को कुछ बात बतानी है।


काश, उनसे नज़रें ना मिली होती,

दिल की बातें आंखों से ना हुई होती।

काश ना गुजरे होते उन गलियों से,

ना मर्ज होता, ना मर्ज की दवा होती।


कसूर सारा उन निगाहों का था,

देखा जिन्हें, और फना हो गए।

राहें चली थी जिन्हें थामे,

जाने वो हाथ कहां खो गए।


शब के अंधेरों में जिसकी यादें थी,

दिन के उजालों में उसी की बातें थी।

दिल में मकां बना लिया था

ना भूलने वाली वो मुलाकातें थी।


जिस साथ के साथ हालात बदलने चले थे,

हालात कुछ ऐसे हुए कि वो साथ छूट गया।

देखा था जो ख्वाब हमनें,

शीशे सा निकला, छन से टूट गया।


कसमें साथ रहने की जिसके साथ खाई थी,

जिस चेहरे के पीछे हमने दुनिया भुलाई थी।

दूर होने का जिससे खयाल भी ना था कभी,

उसी का दिल तोड़ने की नौबत भी आई थी।


सोचा लिया था उन्हें भूल जायेंगे,

ना याद करेंगे, ना याद आएंगे।

पता था, इस दोराहे से जो अलग हुए रास्ते,

लौटकर कभी वापिस मिल ना पाएंगे।


आसां तो नहीं था सब कुछ मेरे लिए भी,

मगर हालात ऐसे थे कि उनसे दूर हुए।

मेरी बेबसी का आलम तो देखिए,

कत्ल भी हमारा हुआ और गुनहगार भी हम हुए।


खैर, बातें ये, महज़ यादें हैं जिन्हें भुला ना सके,

जिंदगी के उस मोड़ से मुड़कर आ ना सके।

वो खता करके भी खफ़ा हो गए,

और हम अपनी बेबसी भी बता ना सके।


आरज़ू थी कभी हमारी भी, ख्वाबों को पूरा करने की,

क्या पता था, ख्वाब देखना ही एक आरज़ू बन जायेगी।

छोड़ आए थे जिनको सफर में पीछे,

पता नहीं था वो यादें इतनी खास बन जाएंगी।

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