Saturday 29 July 2023

ये बनावटी मुस्कान...!

चेहरे पर ये जो,

बनावटी मुस्कान ला रहे हो।

मेरे दर्द पर मुस्कराने का,

हुनर अभी जिंदा है या,

अपना कोई दर्द छिपा रहे हो।।


बिखरा तो मैं भी था,

मगर फिर से जुड़ गया।

आज़ाद पंछी था,

फुर्र से उड़ गया।।


ये ऊंची ईमारतें, महंगी गाड़ियां,

माफ़ करना, मेरे बस की नहीं थी।

उस बड़ी सी कोठी में रहकर,

आज भी तन्हा है जो,

शायद तुम तो वही थी।


उन रिश्तों की कीमत लगाई तुमने

जो सामने थे तुम्हारे मुफ्त में।

मगर तुम्हारी गलती भी क्या थी,

तुम तो कैद थी,

दिखावटी ज़माने की गिरफ्त में।।


शौहरत और रुतबे का,

नशा तुम पर,

कुछ ऐसा चढ़ा था।

देख नहीं पाए तुम शायद मुझे,

मैं वहीं भीड़ में खड़ा था।


आज भी इस दिखावे से

शायद निकल नहीं पा रहे हो,

शायद इसीलिए चेहरे पर ये,

बनावटी मुस्कान ला रहे हो।। 

Tuesday 4 July 2023

बढ़े चलो

 बढ़े चलो, बढ़े चलो।


सृजन के श्वेत मार्ग पर, 

संघर्ष को साथी मानकर,

चुनौतियां स्वीकार कर, 

विपत्तियों को काट कर,

नहीं झुको, नहीं रुको।

बढ़े चलो, बढ़े चलो।


मुश्किलें आए तो,

नाव डगमगाये जो,

रात का अंधेरा हो,

तूफान भी घनेरा हो,

नहीं डिगो, नहीं डरो,

बढ़े चलो, बढ़े चलो।


हृदय को अपने थामकर,

विश्वास अपने आप पर,

पंख तुम पसार कर,

हौसलों की नाव पर,

मंजिलों से तुम मिलों,

बढ़े चलो, बढ़े चलो।


आशाओं की नयी वो भोर,

भरके बाजुओं में जोर,

शांत चित्त, कर्म शोर,

सफलता के शिखर की ओर,

विजयी बनो, अजेय बनो,

बढ़े चलो, बढ़े चलो।।

Tuesday 27 June 2023

मेरा गांव

हां

मैं एक गांव से आता हूं।


वहां आज भी,

पिता के नाम से जाना जाता हूं।

और यहां शहर में,

फ्लैट नंबर से ही पहचाना जाता हूं।

 

कुएं पर नहाने से शावर में नहाने तक का सफर,

कब तय हुआ, पता नहीं चला।

मगर कामयाबी की इस दौड़ में,

गांव कब पीछे छूट गया, पता नहीं चला।

 

वहां मिट्टी के कच्चे घरों में भी,

पक्के रिश्ते मिल जाते हैं।

और यहां ऊंची इमारतों में भी,

खोखले जमीर पाए जाते हैं।

 

पर सुकून ये है कि,

आज भी परिवार साथ है।

मेरे सर पर,

माता पिता, बुजुर्गों का हाथ है।

 

अब गांव साल में,

कभी कभी ही जा पाता हूं।

अपने गांव को देखकर,

आज भी बच्चा हो जाता हूं।

हां

मैं एक गांव से आता हूं।

Wednesday 14 June 2023

असफलता - एक और अवसर

जीतने की दौड़ में,

मुमकिन है कभी हार भी जाओ,

चढ़ते चढ़ते सीढियां,

हो सकता है कभी गिर भी जाओ।


असफलता जो मिले तुम्हें,

समझो एक पड़ाव है, ठहराव नहीं,

कामयाबी तक जाता है जो रास्ता,

शुरुआत है उसकी, मुकाम नहीं।


ना कभी उदास होना,

ना कभी घबराना,

परीक्षा की इस घड़ी में,

अपने कदम पीछे ना हटाना।


असफलता इक अवसर है,

पहचानो इसे और आगे बढ़ो,

जो लिख ना पाए इस बार,

वो नई इबारतें गढ़ो।


अपने कर्तव्य पथ पर,

उस चिड़िया से सीखो अडिगता से बढ़ना,

हजार बार टूटने पर भी घोंसला,

ना छोड़ा जिसने लड़ना।


हौसले मजबूत हो तुम्हारे,

तो कोई लक्ष्य बड़ा नहीं,

क्यूंकि जीवन के इस महासमर में,

हारा वहीं जो लड़ा नहीं।

Thursday 1 June 2023

इक अनकही कहानी

यूं तो बात कुछ पुरानी है,

इक अनकही सी कहानी है।

जो लिखने का आज खयाल आया,

शायद दिल को कुछ बात बतानी है।


काश, उनसे नज़रें ना मिली होती,

दिल की बातें आंखों से ना हुई होती।

काश ना गुजरे होते उन गलियों से,

ना मर्ज होता, ना मर्ज की दवा होती।


कसूर सारा उन निगाहों का था,

देखा जिन्हें, और फना हो गए।

राहें चली थी जिन्हें थामे,

जाने वो हाथ कहां खो गए।


शब के अंधेरों में जिसकी यादें थी,

दिन के उजालों में उसी की बातें थी।

दिल में मकां बना लिया था

ना भूलने वाली वो मुलाकातें थी।


जिस साथ के साथ हालात बदलने चले थे,

हालात कुछ ऐसे हुए कि वो साथ छूट गया।

देखा था जो ख्वाब हमनें,

शीशे सा निकला, छन से टूट गया।


कसमें साथ रहने की जिसके साथ खाई थी,

जिस चेहरे के पीछे हमने दुनिया भुलाई थी।

दूर होने का जिससे खयाल भी ना था कभी,

उसी का दिल तोड़ने की नौबत भी आई थी।


सोचा लिया था उन्हें भूल जायेंगे,

ना याद करेंगे, ना याद आएंगे।

पता था, इस दोराहे से जो अलग हुए रास्ते,

लौटकर कभी वापिस मिल ना पाएंगे।


आसां तो नहीं था सब कुछ मेरे लिए भी,

मगर हालात ऐसे थे कि उनसे दूर हुए।

मेरी बेबसी का आलम तो देखिए,

कत्ल भी हमारा हुआ और गुनहगार भी हम हुए।


खैर, बातें ये, महज़ यादें हैं जिन्हें भुला ना सके,

जिंदगी के उस मोड़ से मुड़कर आ ना सके।

वो खता करके भी खफ़ा हो गए,

और हम अपनी बेबसी भी बता ना सके।


आरज़ू थी कभी हमारी भी, ख्वाबों को पूरा करने की,

क्या पता था, ख्वाब देखना ही एक आरज़ू बन जायेगी।

छोड़ आए थे जिनको सफर में पीछे,

पता नहीं था वो यादें इतनी खास बन जाएंगी।

Sunday 14 May 2023

मां...

सुना मैने कुछ यूं कि,

लोगों ने मां के लिए मदर्स डे मनाया।

बस अपनी मां को छोड़कर,

सारी दुनिया में मां के लिए अपना प्यार जताया।


जिस मां ने दुनिया से रूबरू कराया

उसके लिए एक पूरे दिन व्हाट्सएप स्टेटस लगाया।

कहीं कहीं केक भी कटवाया,

कुछ ने तो मां के लिए तोहफा भी मंगवाया।


फोटो लेता रहा वो मां के पैर छूकर तो कभी गले लगकर,

और वो ममता की मूरत रोती रही खुश हो होकर।

फिर मां को छोड़कर वो मदर्स डे मनाने चला गया,

मां का बनाया हुआ उसका मनपसंद हलवा रखा रह गया।


गैरों के सामने झूठी शान के लिए इतना कुछ किया,

मां के पास बैठकर उसकी खैर खबर इक बार भी न लिया।

पूरी उम्र गुजार दी जिसने बच्चों की खुशी के लिए,

उन बच्चों ने महज एक दिन मनाया उस मां के लिए।


इतना प्यार मां के लिए एक दिन में क्यूं उमड़ के आया,

उस बेचारी भोली भाली मां को तो ये समझ भी न आया।

वो सोचती रही, ऐसा मदर्स डे तो हर रोज आए,

दिखावे के लिए ही सही, पर औलाद पास तो आए।


उसको नहीं ख्वाहिश किसी तोहफे, किसी उपहार की,

वो तो एक जिंदा मूरत है निस्वार्थ प्यार की।

खुद कांटों पर चलके भी हाथों में रखती है,

बच्चों को छांव में रखने के लिए खुद धूप में तपती है।


भाई बहन ने पूछा कि हमारे लिए क्या लाते हो,

पिताजी ने पूछा कितनी तनख्वाह पाते हो।

पर मां तो मां होती है न,

एक उसी ने पूछा, खाना तो वक्त पर खाते हो।


बच्चों की खुशी के लिए मंदिर मस्जिद तक जाती है,

अपनी ममता के आगे अपना स्त्रीत्व भी भूल जाती है।

हमेशा औलाद की खुशी से न जाने कैसे खुश हो जाती है,

खुद के शौक, गम, खुशी सारे जज्बात पीछे छोड़ आती है।


जब तक बच्चे घर न आ जाएं, उनकी राह तकती है,

सच में मां जैसा प्यार बस मां ही कर सकती है।

घर में मां का होना ही, जन्नत होती है,

खुशनसीब होते हैं वो लोग जिनके पास मां होती है।


माना कि सबके पास वक्त की कमी है,

फिर भी गर आंखों में थोड़ी भी नमी है।

वक्त रहते अपनी गलती सुधार लेना,

बस यूं ही बिना किसी वजह के मां के पास बैठकर कुछ पल गुजार लेना।

Thursday 4 May 2023

हां ... हम बैंकर्स

अपने परिवार के लिए, परिवार से ही दूर रहते हैं।।

हां ...हम बैंकर्स एक साथ दोहरी जिंदगी जीते हैं।


पहला परिवार जिसने हमको बेफिक्र रहना सिखाया।

और दूसरे ने, पहले के लिए, अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान दिलाया।।


पहले परिवार में मां बाप की सेवा का दिल में अरमान है।

दूसरे परिवार में उत्तम ग्राहक सेवा ही हमारी पहचान है।।


भाई, बहन, बच्चों की परवाह जैसे अपने परिवार में होती है।

कुछ वैसी ही चिंता बैंक में अपने नए साथियों के लिए भी होती है।।


जैसे अपने परिवार में जीवनसाथी का बर्थडे/ एनिवर्सरी याद रहता है।

वैसे ही यहां बैंक के ऑडिट कंप्लायंस / रफिया का ड्यू डेट भी याद रहता है।।


अपना मकान, गाड़ी, बच्चों की अच्छी पढ़ाई जैसे जीवन के कुछ टारगेट उस परिवार में होते हैं।

डिपॉजिट, एडवांस, एनपीए जैसे कुछ आंकड़ों के टारगेट इस परिवार में भी हर साल होते हैं।।


उस परिवार में जैसे घर समाज की कुछ जिम्मेदारियां हमारी होती हैं।

वैसे ही यहां सामाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रायोरिटी लिस्ट में, हमारी होती हैं।


एक परिवार को अनहोनी से बचाने के लिए खुद का बीमा करवाते हैं।

दूसरे परिवार में वैसे ही रिस्क कवर अपने ग्राहकों को दिलवाते हैं।।


जब कभी दिवाली अपने परिवार के साथ नहीं मना पाते हैं।

तो "अबकी बार दिवाली यहीं की" कहकर अपने मन को समझाते हैं।।


साल भर मेहनत ईमानदारी से काम करने के बाद जब पीएलआई का तोहफा पाते हैं।

यकीन मानिए, हम बैंकर्स इतने में ही बहुत खुश हो जाते हैं।।


इस तोहफे से किसी की कार का डाउन पेमेंट तो किसी के घर में फर्नीचर का इंतजाम हो जाता है।

बस ऐसे ही एक बैंकर अपनी छोटी छोटी ख्वाइशों को मुकाम तक पहुंचाता है।।


पहले परिवार ने हमें खुली आंखों से सपने देखना सिखाया।

तो दूसरे ने अपनी काबिलियत से उन सपनों को सच करना सिखाया।।


कहने को भले ही कितनी बुराइयां है इस परिवार में।

पर मेरे घर की दाल रोटी चलती है इसी परिवार से।।


हमेशा एक परिवार से दूर, पर दूसरे के साथ रहते हैं।

हां ...हम बैंकर्स एक साथ दोहरी जिंदगी जीते है

Friday 28 April 2023

हां...ये भी अच्छा होता है।

हां...ये भी अच्छा होता है।


बचपन गुजर जाने के बाद भी,

मन के अंदर इक कोने में,

उस बचपन को जिंदा रखना अच्छा होता है।


अपनी गलती न होने पर भी,

कभी कभी अपनों के लिए,

चुप रह जाना भी अच्छा होता है।


व्हाट्सएप या फेसबुक पर पोस्ट किए बिना,

कभी किसी की मदद करना,

किसी को सहारा देना भी अच्छा होता है।


कभी कभी यूं ही बिना किसी वजह के,

अपने किसी पुराने दोस्त से,

बात कर लेना अच्छा होता है।


चंद लम्हों के लिए,

अपना स्टैंडर्ड, रुतबा भूलकर,

वो पुरानी जिंदगी जी लेना भी अच्छा होता है।


गर फुरसत मिल जाए,

जो बाहर की दुनिया से,

तो कभी अपने घर में,

अपनों के साथ बैठकर भी,

थोड़ी गुफ्तगू कर लेना अच्छा होता है।


हां...जिंदा रहते हुए ही,

जिंदगी को जी लेना अच्छा होता है। 

Monday 24 April 2023

पढ़ा लिखा समाज

शायद हम ऐसे ही,

पढ़े लिखे समाज से आते हैं।


जहां पर लोग घर मे,

बच्चों को “आप” कहकर बुलाते हैं,

मगर बाहर सड़क पर,

दुगुनी उम्र के लोगों को भी “तू” कहकर चिल्लाते हैं।


इसी पढ़े लिखे समाज में समाज के ठेकेदार,

“बाल मजदूरी” को सामाजिक अपराध बताते हैं,

बाहर जाकर, फिर वही लोग चाय की दुकान पर,

"छोटू दो चाय लाना" आवाज लगाते हैं।


यहां दुनिया के सामने खड़े होकर जो लोग,

नारी सम्मान की बातें करते हैं,

वहीं लोग अपने घर और समाज में,

नारी की मर्यादा को तार तार करते हैं।


खुद के परिवार की सुरक्षा के लिए,

अपना एक्सीडेंटल इंश्योरेंस करवाते हैं,

लेकिन सड़क पर यदि एक्सीडेंट हो जाए,

तो एंबुलेंस बुलाने से पहले मोबाइल से वीडियो बनाते हैं।


यहां पर जिन लोगों में,

अपना वर्चस्व दिखाने की होड़ मची है,

असल में भ्रष्टाचार की मेहंदी भी,

उन्हीं के हाथों में ज्यादा रची है।


अपनों को निसहाय छोड़कर,

दूसरों की मदद के लिए दौड़े जाते हैं,

झूठा दिखावा करने की इस दौड़ में,

हम पढ़े लिखे लोग, मानवता भी भूल जाते हैं।


सच में,

हम ऐसे ही,

पढ़े लिखे समाज से आते हैं। 

Friday 21 April 2023

मेरा कमरा

एक कमरा था कोने में

न दीवार चिनाई सोने में

न रंग हुआ हर दीवाली पे 

न खिड़की प न जाली पे।


हर अलसाई उनींदी रातो में

हर किस्से और मुलाकातों में

वो वही खड़ा था विरल अटल

कुछ मासूम चल आये पैदल।


खुली कभी किताबें, कभी सुरा

न माना कभी किसी बात बुरा

पन्ने पलटे और छलके जाम

मेरे चार यार है नहीं आम।


यूँ बीत गए वर्ष मास दिवस

इम्तिहान हुए न टस से मस

हम जीत गए हम हार गए

सब अपने अपने द्वार गए।


अब यार बन गए सरकारी

नहीं हुई मुलाकाते भारी

सूना कमरा प्रभात निशा

कोई आये इस शहर दिशा।


मैं आस लगाता हूँ अवकाश

फिर से आये वो समय काश

महफ़िल का रास्ता मेरा घर

फिर से गूंजे सबका स्वर।


ये मन का कपड़ा अभागा है

मैं सूई हूँ तू धागा है

क्या मोल लगेगा पिरोने में

एक कमरा था कोने में।

Wednesday 19 April 2023

जीवन की डगर

कभी छांव का सुकून तो कभी धूप की तपन,

कुछ ऐसी ही तो होती है जीवन की डगर।


पहले बचपन फिर जवानी,

हर दिन बदली हुई कहानी।


मगर कहानियों के जैसा,

सुखद अंत यहां हर बार नहीं होता।

शतरंज की बिसातों सा है जीवन,

कौनसा प्यादा वजीर को मारेगा, पता नहीं होता।।


मुसीबतें जीवन में,

परीक्षा की तरह होती हैं।

जिनको पार करके ही,

आगे की राह प्रशस्त होती है।।


माना कि जीवन में,

संघर्ष खत्म नहीं होते।

लेकिन एक साथ,

सारे रास्ते कभी बंद नहीं होते।।


हर रात के बाद,

जैसे सवेरा होता है।

जीवन में भी उसी तरह,

सुख दुख का बसेरा होता है।।


गिरना, उठना और फिर से चलना,

मगर उम्मीदों का दामन कभी ना छोड़ना।।


जब आगे बढ़ते रहना,

एक आदत सी हो जाती है।

सुना है तब हौसलों के आगे,

लहरें भी हार जाती हैं।।


संभव है यह कि

जीत पाओ हर बार नहीं।

किंतु जीवन रण में,

हारा वहीं जो लड़ा नहीं।।

Thursday 13 April 2023

यादें

 यूं तो बदल चुका है सब कुछ,

मगर वो बाकी है मेरे अंदर आज भी कहीं,

भुला देना चाहता हूं उसे,

महफूज है मगर आज भी दिल के इक कोने में,

भाग रहा हूं वक्त की दौड़ में,

वक्त थम सा जाता है मगर आज भी उसके आने से,

सीख गया हूं खुद को खुद से छिपाना,

ईमानदार बन जाता हूं मगर आज भी उसके सामने,

भूल गया हूं मुस्कराना,

लब मुस्करा जाते हैं मगर आज भी उसके होने से,

हां......यादें,

वो मीठी सी यादें ही तो है

बहते पानी सी जिंदगी में पीछे छूट जाती हैं जो, 

चली आती हैं फिर वक्त-बेवक्त कभी भी,

और फिर जिनके आने से चल पड़ता हूं मैं,

अपने ही अंदर छिपे हुए खुद को ढूंढने के लिए,

यूं तो बदल चुका है सब कुछ,

मगर वो बाकी है मेरे अंदर आज भी कहीं।।

सब अपनी जगह पर है...

वो बचपन, 

मां का आंचल, 

स्कूल के बीते लम्हें,

सब अपनी जगह पर है।

बस जीने वाला कोई और है।।


वो बचपन के यार

दादी नानी का प्यार

हँसी खुशियों वाले त्यौहार

सब अपनी जगह पर हैं ।

बस प्रफुल्लित होने वाला कोई और है ।।


वो बेफिक्र शरारतें,

आधे दिन की छुट्टी की खुशी,

इम्तिहान खत्म होने का इंतजार,

सब अपनी जगह पर है।

बस खुश होने वाला कोई और है।।


वो बिना मोबाइल वाली दुनिया,

ना किसी को पाने की फिक्र,

ना किसी को खोने का डर,

सब अपनी जगह पर हैं।

बस महसूस करने वाला कोई और है।।


वो फिक्र अपने परिवार की,

हिम्मत हर मुसीबत का सामना करने की,

बदला कुछ भी नहीं है,

सब अपनी जगह पर हैं।

बस सामना करने वाला कोई और है।।

आखिरी मुलाकात का वादा

आखिरी मुलाकात में वादा था उनका,

जब भी मिलेंगे, मुस्करा कर मिलेंगे।


दिल में भले ही गिले शिकवे होंगे, 

आंखों में भले ही इंतजार होगा,

पर जुबान से ना कोई बात होगी,

चेहरे पर बनावटी मुस्कान होगी।


मुस्कान के उस पार दबे हुए जज्बात भी होंगे,

जज्बातों के कश्मकश में फंसे हुए सवाल भी होंगे,

मगर दिल के इस भंवर को दिल में ही रखेंगे,

मिलकर भी कुछ अनजान से बने रहेंगे।


अनकहे अनसुने से किस्से तो बहुत होंगे,

अधूरे सपने, पीछे छूटे अपने भी होंगे,

पर 'मिले है शायद हम पहले' कहकर, बातें शुरू न होंगी,

चोरी छिपे नजरों की मुलाकातें न होंगी।


अश्क भरी आंखों से जब बोली उन्होने ये बात,

तब हमने जाना, शायद यहीं तक था हमारा साथ,

गुजरे जमाने, प्यार के अफसाने, याद तो बहुत आयेंगे,

लेकिन जानते है हम एक दूसरे को, ये कभी ना बताएंगे।


माना कि हर रिश्ते का अंत मिलन नहीं होता,

लेकिन दिलों के मिलने से बड़ा कुछ नहीं होता,

कान्हा को तो मालूम था, राधा उनकी न होगी,

प्रेम की पौध के साथ विरह की ताप भी होगी।


फिर भी माधव को उस गवालिन के प्रेम ने अपना बना लिया,

इक बिना नाम के रिश्ते ने त्रिलोक-नाथ को हरा दिया,

सच्चा प्रेम किसी रिश्ते, किसी नाम का मोहताज नहीं होता,

वरना यूं ही लोगों को राधा कृष्ण का नाम याद नहीं होता।

बेटियां

   बारिश की बूंदों सी, फूलों की खुशबू सी,

अंधेरे में रोशनी सी, गम में खुशियों सी,

हां साहब, बेटियां कुछ ऐसी ही होती हैं।


वो किस्मत वालों को ही मिल पाती हैं,

आने से जिनके घर की बगिया खिल जाती है,

यूं तो कभी किसी से कुछ भी नहीं मांगती हैं,

मगर बिन मांगे ही बहुत कुछ दे जाती हैं।


वो पिता का स्वाभिमान, 

मां की विरासत होती हैं,

नाम रोशन करती हैं उम्र भर,

अपने घर का ऐसा चिराग होती हैं।


वो अपनी खुशियां सबके साथ बांटती है,

अपने घर को ही पूरी दुनिया मानती हैं,

उनके होने से हर दिन एक त्यौहार है,

घर में उनका होना ही एक वरदान है।


वो कभी द्रौपदी मुर्मू, तो कभी हरमनप्रीत कौर है,

गौर से सुनो, हर तरफ आज उसी के नाम का शोर है,

सबके साथ कंधे से कंधा मिलाती है,

अपने घर का, अपने देश का मान बढ़ाती है।


कभी बहन तो कभी मां बन जाती हैं

एक ही बार में ना जाने कितने किरदार निभाती हैं,

यूं तो सबकी तकदीर पहले से ही लिख जाती है,

मगर ये बेटियां हैं साहब, जिनके आने से किस्मत भी बदल जाती है।


जाओ बेटियों, 

आगे बढ़ो,

कुछ बड़ा नहीं तुम्हारे लिए,

कुछ अप्राप्य नहीं तुम्हारे लिए।


बारिश की बूंदों सी, फूलों की खुशबू सी,

अंधेरे में रोशनी सी, गम में खुशियों सी,

हां साहब, बेटियां कुछ ऐसी ही होती हैं।

हो सके तो..

   हो सके तो ढूंढ लो,

सुकून का वो दरवाजा,

खुलता हो जो उस पुरानी दुनिया में,

जी सको जहां फिर से बचपन तुम अपना।


हो सके तो ढूंढ लो,

खुशियों की वो खिड़की,

झांक सको जहां से वक्त के उस पार,

देख सको जहां तुम खिलखिलाते हुए अपने आप को।


हो सके तो ढूंढ लो,

जज्बातों का वो समंदर,

चल सको जिसके किनारे कुछ कदम नंगे पैर,

सहेज सको जहां कुछ पुराने रिश्ते फिर से।


हो सके तो ढूंढ लो,

अपनेपन की वो गीली मिट्टी,

बो सको जिसमें हरे भरे परिवार की पौध,

सींच सको जिसे प्यार और अपनेपन से।


हो सके तो ढूंढ लो,

यादों के वो झरोखे,

आवाज दे सको जहां से अपने उन दोस्तों को,

छोड़ आए जिनको आगे बढ़ने की दौड़ में।


हो सके तो वक्त निकाल लो,

अपने आज के लिए,

ताकि कल अफसोस न हो,

अपने कल के लिए।।

बचपन

 बचपन कितना अच्छा था।I


वो बचपन की नादानियां,

बेहिसाब शैतानियां,

ना जरूरतों का ध्यान,

ना दिल में बड़े अरमान,

दिमाग थोड़ा कच्चा था

बचपन कितना अच्छा था।


वो पापा की डांट,

और फिर मां का लाड़, 

ना आने वाले कल की फिक्र,

ना गुजरे वक्त का जिक्र,

बस दिल हमारा सच्चा था

बचपन कितना अच्छा था।


वो स्कूल का जमाना,

दोस्तों के साथ खिलखिलाना,

रात के खुले आसमान में तारों में तस्वीर बनाना,

फिर तारे गिनते हुए मासूम सपनो में खो जाना,

नादान सा इक बच्चा था,

बचपन कितना अच्छा था।


और फिर.. 

वो मौज मस्ती का दौर खत्म हो गया,

हमारा नादान बचपन जवान हो गया,

स्कूल बैग वाले कंधे अब जिम्मेदारियों का बोझ उठाने लगे,

वो बेवजह खुश रहने वाले अब खुशियां कमाने लगे,

सच में, 

जीवन का वो निश्छल दौर कितना सच्चा था,

बचपन कितना अच्छा था।।

जिंदगी का सफर

कब से जतन किए, लेकिन  बन तो नहीं पाया था।

उम्मीदों के पंखों से, अब तक उड़ तो नहीं पाया था।।

बात सिर्फ इंसान बनने की थी तो ठीक थी, पर काबिल तो नहीं बन पाया था।
इन बहते झरनों की तरह, निश्छल तो नहीं बन पाया था।।

भाग रहा था जिंदगी की इस दौड़ में, लेकिन अब तक जीत तो नहीं पाया था।
जीतने की चाह क्यूं थी, ये अभी तक जान तो नहीं पाया था।।

दौड़ा, गिरा, उठा फिर दौड़ा लेकिन मंजिल को अब तक देख तो नहीं पाया था।
रंगमंच की कठपुतली है हम सब यहां, ये सच अब तक जान तो नहीं पाया था।।

पर अब एक धुंधला सा उजियारा दिखा है, दूर क्षितिज में।
जिंदगी के सफ़र में जाना किस डगर है, अब ये देख पाया हूं।।
जीत जाऊंगा ये दौड़ जिंदगी की, मन में ये ठान पाया हूं।
आशाओं की नई फूटती कोंपलों से बनता जिंदगी का वटवृक्ष देख पाया हूं ।।

ये बनावटी मुस्कान...!

चेहरे पर ये जो, बनावटी मुस्कान ला रहे हो। मेरे दर्द पर मुस्कराने का, हुनर अभी जिंदा है या, अपना कोई दर्द छिपा रहे हो।। बिखरा तो मैं भी था, म...