अपने परिवार के लिए, परिवार से ही दूर रहते हैं।।
हां ...हम बैंकर्स एक साथ दोहरी जिंदगी जीते हैं।
पहला परिवार जिसने हमको बेफिक्र रहना सिखाया।
और दूसरे ने, पहले के लिए, अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान दिलाया।।
पहले परिवार में मां बाप की सेवा का दिल में अरमान है।
दूसरे परिवार में उत्तम ग्राहक सेवा ही हमारी पहचान है।।
भाई, बहन, बच्चों की परवाह जैसे अपने परिवार में होती है।
कुछ वैसी ही चिंता बैंक में अपने नए साथियों के लिए भी होती है।।
जैसे अपने परिवार में जीवनसाथी का बर्थडे/ एनिवर्सरी याद रहता है।
वैसे ही यहां बैंक के ऑडिट कंप्लायंस / रफिया का ड्यू डेट भी याद रहता है।।
अपना मकान, गाड़ी, बच्चों की अच्छी पढ़ाई जैसे जीवन के कुछ टारगेट उस परिवार में होते हैं।
डिपॉजिट, एडवांस, एनपीए जैसे कुछ आंकड़ों के टारगेट इस परिवार में भी हर साल होते हैं।।
उस परिवार में जैसे घर समाज की कुछ जिम्मेदारियां हमारी होती हैं।
वैसे ही यहां सामाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रायोरिटी लिस्ट में, हमारी होती हैं।
एक परिवार को अनहोनी से बचाने के लिए खुद का बीमा करवाते हैं।
दूसरे परिवार में वैसे ही रिस्क कवर अपने ग्राहकों को दिलवाते हैं।।
जब कभी दिवाली अपने परिवार के साथ नहीं मना पाते हैं।
तो "अबकी बार दिवाली यहीं की" कहकर अपने मन को समझाते हैं।।
साल भर मेहनत ईमानदारी से काम करने के बाद जब पीएलआई का तोहफा पाते हैं।
यकीन मानिए, हम बैंकर्स इतने में ही बहुत खुश हो जाते हैं।।
इस तोहफे से किसी की कार का डाउन पेमेंट तो किसी के घर में फर्नीचर का इंतजाम हो जाता है।
बस ऐसे ही एक बैंकर अपनी छोटी छोटी ख्वाइशों को मुकाम तक पहुंचाता है।।
पहले परिवार ने हमें खुली आंखों से सपने देखना सिखाया।
तो दूसरे ने अपनी काबिलियत से उन सपनों को सच करना सिखाया।।
कहने को भले ही कितनी बुराइयां है इस परिवार में।
पर मेरे घर की दाल रोटी चलती है इसी परिवार से।।
हमेशा एक परिवार से दूर, पर दूसरे के साथ रहते हैं।
हां ...हम बैंकर्स एक साथ दोहरी जिंदगी जीते है
बेहतरीन लिखावट 👌👌..बैंकिंग जीवन को बहुत ही सरल शब्दों में बख़ूबी पिरोया है 👍
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