Saturday 29 July 2023

ये बनावटी मुस्कान...!

चेहरे पर ये जो,

बनावटी मुस्कान ला रहे हो।

मेरे दर्द पर मुस्कराने का,

हुनर अभी जिंदा है या,

अपना कोई दर्द छिपा रहे हो।।


बिखरा तो मैं भी था,

मगर फिर से जुड़ गया।

आज़ाद पंछी था,

फुर्र से उड़ गया।।


ये ऊंची ईमारतें, महंगी गाड़ियां,

माफ़ करना, मेरे बस की नहीं थी।

उस बड़ी सी कोठी में रहकर,

आज भी तन्हा है जो,

शायद तुम तो वही थी।


उन रिश्तों की कीमत लगाई तुमने

जो सामने थे तुम्हारे मुफ्त में।

मगर तुम्हारी गलती भी क्या थी,

तुम तो कैद थी,

दिखावटी ज़माने की गिरफ्त में।।


शौहरत और रुतबे का,

नशा तुम पर,

कुछ ऐसा चढ़ा था।

देख नहीं पाए तुम शायद मुझे,

मैं वहीं भीड़ में खड़ा था।


आज भी इस दिखावे से

शायद निकल नहीं पा रहे हो,

शायद इसीलिए चेहरे पर ये,

बनावटी मुस्कान ला रहे हो।। 

Tuesday 4 July 2023

बढ़े चलो

 बढ़े चलो, बढ़े चलो।


सृजन के श्वेत मार्ग पर, 

संघर्ष को साथी मानकर,

चुनौतियां स्वीकार कर, 

विपत्तियों को काट कर,

नहीं झुको, नहीं रुको।

बढ़े चलो, बढ़े चलो।


मुश्किलें आए तो,

नाव डगमगाये जो,

रात का अंधेरा हो,

तूफान भी घनेरा हो,

नहीं डिगो, नहीं डरो,

बढ़े चलो, बढ़े चलो।


हृदय को अपने थामकर,

विश्वास अपने आप पर,

पंख तुम पसार कर,

हौसलों की नाव पर,

मंजिलों से तुम मिलों,

बढ़े चलो, बढ़े चलो।


आशाओं की नयी वो भोर,

भरके बाजुओं में जोर,

शांत चित्त, कर्म शोर,

सफलता के शिखर की ओर,

विजयी बनो, अजेय बनो,

बढ़े चलो, बढ़े चलो।।

Tuesday 27 June 2023

मेरा गांव

हां

मैं एक गांव से आता हूं।


वहां आज भी,

पिता के नाम से जाना जाता हूं।

और यहां शहर में,

फ्लैट नंबर से ही पहचाना जाता हूं।

 

कुएं पर नहाने से शावर में नहाने तक का सफर,

कब तय हुआ, पता नहीं चला।

मगर कामयाबी की इस दौड़ में,

गांव कब पीछे छूट गया, पता नहीं चला।

 

वहां मिट्टी के कच्चे घरों में भी,

पक्के रिश्ते मिल जाते हैं।

और यहां ऊंची इमारतों में भी,

खोखले जमीर पाए जाते हैं।

 

पर सुकून ये है कि,

आज भी परिवार साथ है।

मेरे सर पर,

माता पिता, बुजुर्गों का हाथ है।

 

अब गांव साल में,

कभी कभी ही जा पाता हूं।

अपने गांव को देखकर,

आज भी बच्चा हो जाता हूं।

हां

मैं एक गांव से आता हूं।

Wednesday 14 June 2023

असफलता - एक और अवसर

जीतने की दौड़ में,

मुमकिन है कभी हार भी जाओ,

चढ़ते चढ़ते सीढियां,

हो सकता है कभी गिर भी जाओ।


असफलता जो मिले तुम्हें,

समझो एक पड़ाव है, ठहराव नहीं,

कामयाबी तक जाता है जो रास्ता,

शुरुआत है उसकी, मुकाम नहीं।


ना कभी उदास होना,

ना कभी घबराना,

परीक्षा की इस घड़ी में,

अपने कदम पीछे ना हटाना।


असफलता इक अवसर है,

पहचानो इसे और आगे बढ़ो,

जो लिख ना पाए इस बार,

वो नई इबारतें गढ़ो।


अपने कर्तव्य पथ पर,

उस चिड़िया से सीखो अडिगता से बढ़ना,

हजार बार टूटने पर भी घोंसला,

ना छोड़ा जिसने लड़ना।


हौसले मजबूत हो तुम्हारे,

तो कोई लक्ष्य बड़ा नहीं,

क्यूंकि जीवन के इस महासमर में,

हारा वहीं जो लड़ा नहीं।

Thursday 1 June 2023

इक अनकही कहानी

यूं तो बात कुछ पुरानी है,

इक अनकही सी कहानी है।

जो लिखने का आज खयाल आया,

शायद दिल को कुछ बात बतानी है।


काश, उनसे नज़रें ना मिली होती,

दिल की बातें आंखों से ना हुई होती।

काश ना गुजरे होते उन गलियों से,

ना मर्ज होता, ना मर्ज की दवा होती।


कसूर सारा उन निगाहों का था,

देखा जिन्हें, और फना हो गए।

राहें चली थी जिन्हें थामे,

जाने वो हाथ कहां खो गए।


शब के अंधेरों में जिसकी यादें थी,

दिन के उजालों में उसी की बातें थी।

दिल में मकां बना लिया था

ना भूलने वाली वो मुलाकातें थी।


जिस साथ के साथ हालात बदलने चले थे,

हालात कुछ ऐसे हुए कि वो साथ छूट गया।

देखा था जो ख्वाब हमनें,

शीशे सा निकला, छन से टूट गया।


कसमें साथ रहने की जिसके साथ खाई थी,

जिस चेहरे के पीछे हमने दुनिया भुलाई थी।

दूर होने का जिससे खयाल भी ना था कभी,

उसी का दिल तोड़ने की नौबत भी आई थी।


सोचा लिया था उन्हें भूल जायेंगे,

ना याद करेंगे, ना याद आएंगे।

पता था, इस दोराहे से जो अलग हुए रास्ते,

लौटकर कभी वापिस मिल ना पाएंगे।


आसां तो नहीं था सब कुछ मेरे लिए भी,

मगर हालात ऐसे थे कि उनसे दूर हुए।

मेरी बेबसी का आलम तो देखिए,

कत्ल भी हमारा हुआ और गुनहगार भी हम हुए।


खैर, बातें ये, महज़ यादें हैं जिन्हें भुला ना सके,

जिंदगी के उस मोड़ से मुड़कर आ ना सके।

वो खता करके भी खफ़ा हो गए,

और हम अपनी बेबसी भी बता ना सके।


आरज़ू थी कभी हमारी भी, ख्वाबों को पूरा करने की,

क्या पता था, ख्वाब देखना ही एक आरज़ू बन जायेगी।

छोड़ आए थे जिनको सफर में पीछे,

पता नहीं था वो यादें इतनी खास बन जाएंगी।

Sunday 14 May 2023

मां...

सुना मैने कुछ यूं कि,

लोगों ने मां के लिए मदर्स डे मनाया।

बस अपनी मां को छोड़कर,

सारी दुनिया में मां के लिए अपना प्यार जताया।


जिस मां ने दुनिया से रूबरू कराया

उसके लिए एक पूरे दिन व्हाट्सएप स्टेटस लगाया।

कहीं कहीं केक भी कटवाया,

कुछ ने तो मां के लिए तोहफा भी मंगवाया।


फोटो लेता रहा वो मां के पैर छूकर तो कभी गले लगकर,

और वो ममता की मूरत रोती रही खुश हो होकर।

फिर मां को छोड़कर वो मदर्स डे मनाने चला गया,

मां का बनाया हुआ उसका मनपसंद हलवा रखा रह गया।


गैरों के सामने झूठी शान के लिए इतना कुछ किया,

मां के पास बैठकर उसकी खैर खबर इक बार भी न लिया।

पूरी उम्र गुजार दी जिसने बच्चों की खुशी के लिए,

उन बच्चों ने महज एक दिन मनाया उस मां के लिए।


इतना प्यार मां के लिए एक दिन में क्यूं उमड़ के आया,

उस बेचारी भोली भाली मां को तो ये समझ भी न आया।

वो सोचती रही, ऐसा मदर्स डे तो हर रोज आए,

दिखावे के लिए ही सही, पर औलाद पास तो आए।


उसको नहीं ख्वाहिश किसी तोहफे, किसी उपहार की,

वो तो एक जिंदा मूरत है निस्वार्थ प्यार की।

खुद कांटों पर चलके भी हाथों में रखती है,

बच्चों को छांव में रखने के लिए खुद धूप में तपती है।


भाई बहन ने पूछा कि हमारे लिए क्या लाते हो,

पिताजी ने पूछा कितनी तनख्वाह पाते हो।

पर मां तो मां होती है न,

एक उसी ने पूछा, खाना तो वक्त पर खाते हो।


बच्चों की खुशी के लिए मंदिर मस्जिद तक जाती है,

अपनी ममता के आगे अपना स्त्रीत्व भी भूल जाती है।

हमेशा औलाद की खुशी से न जाने कैसे खुश हो जाती है,

खुद के शौक, गम, खुशी सारे जज्बात पीछे छोड़ आती है।


जब तक बच्चे घर न आ जाएं, उनकी राह तकती है,

सच में मां जैसा प्यार बस मां ही कर सकती है।

घर में मां का होना ही, जन्नत होती है,

खुशनसीब होते हैं वो लोग जिनके पास मां होती है।


माना कि सबके पास वक्त की कमी है,

फिर भी गर आंखों में थोड़ी भी नमी है।

वक्त रहते अपनी गलती सुधार लेना,

बस यूं ही बिना किसी वजह के मां के पास बैठकर कुछ पल गुजार लेना।

Thursday 4 May 2023

हां ... हम बैंकर्स

अपने परिवार के लिए, परिवार से ही दूर रहते हैं।।

हां ...हम बैंकर्स एक साथ दोहरी जिंदगी जीते हैं।


पहला परिवार जिसने हमको बेफिक्र रहना सिखाया।

और दूसरे ने, पहले के लिए, अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान दिलाया।।


पहले परिवार में मां बाप की सेवा का दिल में अरमान है।

दूसरे परिवार में उत्तम ग्राहक सेवा ही हमारी पहचान है।।


भाई, बहन, बच्चों की परवाह जैसे अपने परिवार में होती है।

कुछ वैसी ही चिंता बैंक में अपने नए साथियों के लिए भी होती है।।


जैसे अपने परिवार में जीवनसाथी का बर्थडे/ एनिवर्सरी याद रहता है।

वैसे ही यहां बैंक के ऑडिट कंप्लायंस / रफिया का ड्यू डेट भी याद रहता है।।


अपना मकान, गाड़ी, बच्चों की अच्छी पढ़ाई जैसे जीवन के कुछ टारगेट उस परिवार में होते हैं।

डिपॉजिट, एडवांस, एनपीए जैसे कुछ आंकड़ों के टारगेट इस परिवार में भी हर साल होते हैं।।


उस परिवार में जैसे घर समाज की कुछ जिम्मेदारियां हमारी होती हैं।

वैसे ही यहां सामाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रायोरिटी लिस्ट में, हमारी होती हैं।


एक परिवार को अनहोनी से बचाने के लिए खुद का बीमा करवाते हैं।

दूसरे परिवार में वैसे ही रिस्क कवर अपने ग्राहकों को दिलवाते हैं।।


जब कभी दिवाली अपने परिवार के साथ नहीं मना पाते हैं।

तो "अबकी बार दिवाली यहीं की" कहकर अपने मन को समझाते हैं।।


साल भर मेहनत ईमानदारी से काम करने के बाद जब पीएलआई का तोहफा पाते हैं।

यकीन मानिए, हम बैंकर्स इतने में ही बहुत खुश हो जाते हैं।।


इस तोहफे से किसी की कार का डाउन पेमेंट तो किसी के घर में फर्नीचर का इंतजाम हो जाता है।

बस ऐसे ही एक बैंकर अपनी छोटी छोटी ख्वाइशों को मुकाम तक पहुंचाता है।।


पहले परिवार ने हमें खुली आंखों से सपने देखना सिखाया।

तो दूसरे ने अपनी काबिलियत से उन सपनों को सच करना सिखाया।।


कहने को भले ही कितनी बुराइयां है इस परिवार में।

पर मेरे घर की दाल रोटी चलती है इसी परिवार से।।


हमेशा एक परिवार से दूर, पर दूसरे के साथ रहते हैं।

हां ...हम बैंकर्स एक साथ दोहरी जिंदगी जीते है

ये बनावटी मुस्कान...!

चेहरे पर ये जो, बनावटी मुस्कान ला रहे हो। मेरे दर्द पर मुस्कराने का, हुनर अभी जिंदा है या, अपना कोई दर्द छिपा रहे हो।। बिखरा तो मैं भी था, म...